उपजाऊ मिट्टी का विज्ञान और बेहतरीन व लाभकारी खेती के तरीके

5 दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम

मिट्टी उपजाऊ रखे बिना कोई खेत लंबे समय तक जिंदा नहीं बच सकता। कृत्रिम रसायनों से सबसे ज्यादा नुकसान मिट्टी को हुआ है। बड़े इलाके में जमीन बंजर हो गई है या होने की तरफ जा रही है। किसानों ने बहुत से रासायनिक कृषि के तरीके अपनाए, अक्सर मजबूरी में भी, जिनमें पहले बीज खरीदने होते हैं और फिर व‍िभ‍िन्‍न तरह के रसायन डालने पड़ते हैं। इसके बावजूद फसल पर कीड़ों और बीमारियों का खतरा हमेशा बना रहता है। हमारे देश में हजारों साल से मौजूद बहुत से पारम्परिक ज्ञान को आज ज्यादातर भुला दिया गया है। इस सब के पीछे पूरी दुनिया में आने वाली औद्योगिक तकनीकें और आधुनिक दृष्टिकोण शामिल हैं।

दूसरी ओर धीरे धीरे मिट्टी को समृद्ध करने वाले कार्बन, नाइट्रोजन और सूक्ष्म जीवों के बारे में समझ काफी मजबूत हुई है और यह भी समझ आने लगा है कि बड़ी गलतियां कहाँ की जा रही हैं।

प्राकृतिक खेती पिछले सौ वर्षों में किये गये नुकसान को सुधारने के लिए उठाए जा रहे कदम हैं। ये जैविक या आर्गेनिक खेती से भी आगे बढ़कर है और असली सफल अनुभवों से निकली है। इसमें किसान का जीवन बेहतर बनाने के तरीके मौजूद तो हैं ही, धरती मां को बचाने का सपना है और भावी पीढ़ियों के लिए बेहतर दुनिया छोड़ सकने की आशा है।

इस कोर्स में हम इस खेती के सिद्धांतों और तौर तरीकों, दोनों पर ही बात करेंगे। यदि किसान इसे पूरी तरह न भी अपनाएं, तो भी इसमें बहुत मूल्यवान दृष्टि और विधियां हैं जो किसी भी किसान के लिए बहुपयोगी हैं। 

एक-एक घंटे के 5 सत्र

1. मिट्टी में कार्बन क्यों जरूरी है?

2. मिट्टी के लिए नाइट्रोजन क्यों जरूरी है?

3. मिट्टी उपजाऊ कैसे बनती है?

4. प्राकृतिक खेती की ओर कैसे बढ़ें?

5. पतंजलि झा जी के अनुभव

कोर्स में वक्ता 

अंशुमाला गुप्‍ता

वे IIT कानपुर से इंजीनियरिंग और TISS मुंबई से शिक्षा पर पढ़ाई कर चुकी हैं । NCERT में सीनियर सलाहकार रह चुकी हैं. अभी जॉय ऑफ लर्निंग फाउंडेशन की डायरेक्टर हैं। वर्तमान में बच्‍चों एवं शिक्षकों के बीच विज्ञान शिक्षण के तौर-तरीके बदलने पर कार्य कर रही हैं ताकि विज्ञान के कल्याणकारी उपयोग को गहराई से समझा जा सके। वे पर्यावरण की चिंताओं से भी गहरे सरोकार रखती हैं और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता पर समझ बनाती रही हैं। वे भारत के खेतों में प्राण लौटाने के लिए किसानों के साथ भी कार्य कर रही हैं।

अनुपम बंसल


वे IIT-वाराणसी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं। वर्तमान में जेपीएमसी चेज़ के साथ सूचना प्रौद्योगिकी (IT) में काम कर रहे हैं। वह पिछले 3-4 वर्षों से प्राकृतिक खेती से जुड़े हुए हैं और पिछले एक वर्ष से अधिक समय से प्राकृतिक खाद्यन्न उगा रहे हैं। उनका मिशन छोटे और सीमांत किसानों को जहर मुक्त भोजन उगाने और उनकी आय बढ़ाने में सक्षम बनाना है।

पतंजलि झा

1983 से भारत सरकार के इन्कम टैक्स विभाग में अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे। धीरे-धीरे इन्हें प्राकृतिक खेती में भारी रुचि बन गई। 25 साल तक मेहनत और अनुभव से इन्होंने बिहार के पूर्णिया जिले में एक बहुत सफल प्राकृतिक फार्म निर्मित किया जो आज बेहतरीन जैविक फसलें पैदा करता है और किसी भी कैमिकल आधारित खेत से कई गुना स्वस्थ व लाभकारी है। अब ये सैंकड़ों किसानों को प्रेरणा और मार्गदर्शन दे रहे हैं।